श्री सतगुरु देवाय नमः

       श्री परमहँस गुरुदेव जी  अग जग तारनहार।

       कोटि कोटि मम वन्दना दाता करो स्वीकार॥

             मानुष  चोला धार के लीन्हा  प्रभु अवतार।

             प्रेमा भक्ति सच्चाई का खोल दिया दरबार॥

       तेरी मीठी याद से  आता  चैन  करार।

       तेरे ध्यान से दिल मेरा होता ठण्डाठार॥

             दीन   दुखी  मैं  दास  हूँ  आया  तेरे  द्वार।

             निज चरणों की भक्ति दो माँग रहा भिख्यार॥

       सत चित आनन्द स्वरूप हैं श्री परमहँस अवतार।

       आये हैं करने सतगुरु जग जीवों का उध्दार॥

             आकुल जीवों की दुःख भरी सुनकर प्रभु करुण पुकार।

              प्रकटे हैं जग में पारब्रह्म धर रूप सगुण साकार॥

       पारस देकर प्रभु नाम का किया हम पे अमित उपकार।

       लोहे से कंचन कर दिया प्रभु ने जीवन दिया सँवार॥

            मोह ममता तिमिर मिटाया किया हिय ज्ञान उजियार।

             मन माया का श्री सतगुरु विष सारा दिया उतार॥

       सगरे दुःख कष्ट निवारकर सुख आनन्द दिया अपार।

       मुझे याद आयें हित भरे वचन सन्तों ने जो कहे पुकार॥

             जग मुआ विषधर धरे कहें कबीर विचार।

             जन सतगुरु को पाईया सो जन उतरे पार॥

http://groupchanting.blogspot.com